शीर्षक = बारह बरस पीछे, घूरे के भी दिन फिरते है
आज 20 मई थी, यानी की स्कूल खुलने का आखिरी दिन, सब बच्चें गर्मियों की छुट्टी को लेकर बहुत उत्साहित थे, कोई नानी के घर जाने की बात कर रहा था तो कोई दादा दादी के घर तो कोई देश से बाहर तो कोई कुछ नया सीखने की बात कर रहा था
ख़ुशी के साथ साथ आज सब बच्चें उदास भी थे, क्यूंकि अब 40 दिन बाद ही एक दुसरे से मिल सकेंगे , आज पूरा स्कूल बच्चों से भरा हुआ था , कोई भी बच्चा अनुपस्थित नही था
कक्षा 5 में पढ़ने वाले बच्चें जो की अब स्कूल खुलने पर कक्षा 6 में दाखिला कराएँगे , नये कक्षा और नयी किताबों को पढ़ने की जो ख़ुशी होती है, उससे बढ़ कर कोई और ख़ुशी नही होती किसी भी स्कूली विद्यार्थी के लिए
सब बच्चें कक्षा में बैठे थे, और छुट्टी होने का इंतज़ार कर रहे थे कि अचानक कक्षा अध्यापिका उनके कमरे में आयी
जिन्हे देख सब बच्चें खड़े हो जाते है और उन्हें नमस्ते करते है, अध्यापिका जी उन्हें बैठने का कह कर अपने चेहरे पर एक मुस्कान सजा कर उन बच्चों को सम्भोधित करते हुए कहती है
जैसा की आप सब ही जानते है , कि हर साल कि भांति इस साल भी आप सब कि गर्मियों की छुट्टियां पड़ने जा रही है, जिसमे आप सब अपने परिवार जनों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएंगे, और आज सब का इस स्कूल में अपने दोस्तों के साथ आखिरी दिन है उसके बाद आप सब आने वाली जुलाई की पहली तारीख़ को मिलेंगे और ये कक्षा भी बदल जाएगी क्यूंकि आप सब नयी कक्षा में नयी किताबों के साथ दाखिल होंगे
हम सब ही जानते है, कि छुट्टियों के चलते आप सब का संपर्क पढ़ाई से टूट कर खेल कूद और मस्ती से जुड़ जाता है, जो की आप सब के लिए अच्छा होता है, आपके मानसिक और शरीरिक विकास के लिए जितनी शिक्षा जरूरी है उससे कही ज्यादा खेल कूद भी जरूरी है , इसलिए हर साल की भांति आपका संपर्क विद्या से बनाये रखने के लिए हम इस साल भी आप सब ही को कुछ होम वर्क अवश्य देंगे
लेकिन घबराने की कोई ज़रूरत नही, हम जानते है कि खेल कूद के चलते आप ज्यादा होम वर्क नही कर सकते, इसलिए इस बार प्रधानाचार्य जी के कहने पर कक्षा 5 से लेकर कक्षा 8 तक पढ़ने वाले बच्चों के लिए एक प्रतियोगिता का आयोजन किया गया है , इस प्रतियोगिता का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ आपके अंदर छिपे लेखन के हुनर को जाग्रत करना है और इसी के साथ आपको नैतिक शिक्षा देना है , जो कि आप इस प्रतियोगिता के माध्यम से खेल खेल में सीखेंगे , इस प्रतियोगिता में आप आपने माता, पिता, दादा दादी, नाना नानी या कोई भी घर का बड़ा सदस्य जिससे आप बहुत लगाव रखते है , उससे मदद ले सकते है
ये प्रतियोगिता है , मुहावरों की दुनिया, आप सब बच्चों को कुछ देर में एक परचा मिलेगा जिस पर कुछ मुहावरें लिखें हुए है , आप सब को उन मुहावरों के ऊपर एक एक कहानी लिखनी है, जिससे की उन मुहावरों और उनमे छिपे सन्देश को आप अच्छे से समझ जाए, इस प्रतियोगिता में आप किसी बड़े की भी मदद ले सकते है ,
जो कोई भी बच्चा सुंदर और सटीक कहानी लिख कर लाएगा उसे अपनी क्लास का मॉनिटर बनाया जाएगा और तो और उसे पुरुस्कार भी दिया जाएगा, तो देर किस बात की आप सब अपने दिमाग़ के घोड़े दौड़ाइये और खेल कूद के साथ अपने लेखन के हुनर को निखारिये
अध्यापिका ने एक एक कर सब बच्चों को परचा दे दिया और उसके बाद उन्हें गर्मियों की छुट्टियों की बधाई देकर वहाँ से चली जाती है , थोड़ी देर बाद छुट्टी हो जाती है , सब बच्चें दौड़ कर स्कूल की बस में बैठ जाते है
वही खिड़की वाली सीट पर मुँह लटकाये बैठे मानव से उसके दोस्त सुमित ने पूछा " क्या बात है मानव इतना उदास क्यू है? तुझे ख़ुशी नही हो रही है , छुट्टियां पड़ने की "
"नही ऐसी बात नही है , बस वो जो टीचर ने लिखने को दिया है , मुझे नही लगता की मैं वो लिख पाउँगा, क्यूंकि पापा अस्पताल चले जाते है और मम्मी भी उन्ही के साथ चली जाती है, घर पर मैं और मेरी मासी जो मेरा ध्यान रखती है , वो होती है, उनके पास घर का काम करने को होता है, इसलिए मुझे नही लगता की मैं इस प्रतियोगिता में भाग ले सकूँ, मुझे क्लास का मॉनिटर बनना है लेकिन अब मैं नही बन पाउँगा"मानव ने कहा
"तो तू दुखी क्यू होता है? अपने मम्मी पापा से कहना की वो तुझे तेरे दादा दादी के पास ले जाए, वो तेरी मदद जरूर करेंगे, मैं भी अपने दादा के घर जाऊंगा वो ही मेरी मदद करेंगे इन मुहावरों को कहानियों का रूप देने में " सुमित ने कहा
"बात तो तेरी सही है, लेकिन मैंने आज तक अपने दादा दादी को नही देखा है , एक बार मैंने मम्मी से पूछा था तो वो बता रही थी की मेरे दादा और पापा का आपस में झगड़ा हो गया था किसी बात को लेकर, तब से पापा कभी उनके घर नही गए, दादी से बात होती है , पापा की " मानव ने कहा
"अच्छा!, ये बात है कोई नही तू अपनी ज़िद्द पर अड़ जाना की तुझे जाना है , फिर देखना तेरे पापा तुझे ले जाएंगे, एक समय का खाना मत खाना, फिर वो तुझे ले जाएंगे " सुमित ने कहा
"ठीक है, मैं ऐसा ही करूंगा " मानव ने कहा
घर आकर मानव ने किसी से बात नही की, आज उसकी माँ राधिका भी घर पर थी लेकिन उसने उससे भी बात नही की, राधिका समझ गयी थी की ज़रूर कोई बात है
वो उसके पास जाती है , तब मानव उसे सब कुछ बता देता है , और अपने दादा दादी के पास जाने की ज़िद्द करता है , राधिका उसे बहुत समझाने की कोशिश करती है, पर वो नही मानता
दोपहर से शाम हो जाती है , राधिका का पति और मानव के पापा डॉक्टर आशीष भी घर पर पहुंच जाता है , राधिका उसे पूरी बात बताती है , और उससे कहती है
" मानव ने दोपहर से कुछ नही खाया है , उसका कहना है की वो दादा दादी के घर जाएगा, उनसे मिलेगा, आप भी अब जिद्द छोड़ दीजिये चलते है , गांव "
"मुझे नही जाना, ज़ब भूख लगेगी तो वो खा लेगा, मैं नही जा रहा, " आशीष ने कहा
"वो आपका बेटा है, आपकी तरह ज़िद्दी वो कुछ भी नही खायेगा, एक बार चलिए, माँ भी कितना बुला रही है , अब पिता जी वो पहले वाले पिताजी नही रहे है , उन्हें भी अपने बेटे से मिलना है " राधिका ने कहा
"उनकी वही बाते, कि गांव में ही रहो, वहाँ के लोगो का इलाज करो, मैंने इसलिए इतनी पढ़ाई थोड़ी कि है कि मैं उन गांव वालों का इलाज करता फिरू , तुम्हे जाना है तुम जाओ, मैं नही जा रहा हूँ, तुम हो आओ," आशीष ने कहा
"तो आप नही जाएंगे, ठीक है मत आइये, मैं तो जा रही हूँ, इसी बहाने थोड़ा आराम भी मिल जाएगा, ठीक है कल को मैं और मानव चले जाएंगे, आप मत आइये, " राधिका ने कहा
"तो तुम मुझे छोड़ कर चली जाओगी " आशीष ने कहा
"आपसे किसी ने मना किया है , लेकिन आपकी ज़िद्द के आगे कोई क्या करे? मैं तो जा रही हूँ, आपका दिल करे तो आ जाना, वैसे भी मुझे कही जाना था छुट्टियां गुज़ारने इस बहाने अपने ससुराल चली जाउंगी, आराम भी मिल जाएगा और माँ पिताजी से भी मिल लूंगी, आपका तो दिल नही करता कभी अपने घर जाने का लेकिन मैं तो शहर कि पली बडी हूँ, मुझे तो गांव बहुत अच्छे लगते है, इसलिए मैं कल सुबह जा रही हूँ," राधिका ने कहा
"ठीक है तुम जाओ, देखना दो दिन में ही वापस आ जाओगी, पता चल जाएगा गांव का जीवन कितना मुश्किल है , दूर के ढ़ोल सुहाने ही लगते है " आशीष ने कहा
"ठीक है , जो होगा देखा जाएगा, मैं तो चली पैकिंग करने अपनी और मानव की, आप रहना यहाँ अकेले " राधिका ने कहा और वहाँ से चली गयी
मानव को ज़ब पता चला तो वो फूले नही समाया, उसे तो रात को नींद भी नही आ रही थी , बस सुबह होने का इंतज़ार कर रहा था
और अगली सुबह वो गाड़ी में बैठ कर अपने दादा के घर रवाना हो गया , उसने अपने पापा को थोड़ा उदास देखा उसने उनसे चलने को कहा पर वो नही आये लेकिन उसे उम्मीद है की उसके पापा आ जाएंगे
दो घंटे गाड़ी में बैठने के बाद आखिर कार मानव और राधिका ड्राइवर के साथ गांव पहुंच गए जहाँ उसके सास ससुर बहु और पोते को देख बहुत खुश हुए
अपने बेटे के बारे में पूछा , राधिका ने बहाना बनान चाहा लेकिन आशीष के पिताजी दीनदयाल जी समझ गए की आखिर उनका बेटा क्यू नही आया , लेकिन वो खुश थे की उनकी बहु और पोता उनसे मिलने गांव आ गया है, और वो कुछ दिन यही रहेंगे
दोपहर से शाम होती है और फिर शाम से रात होने लगती है, मानव दादा के पास सोने की ज़िद्द करता है और उन्हें सब कुछ बताता है जो भी टीचर ने कहा था,
उसके दादा, ध्यान से उसकी बात सुनते और फिर उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहते " बस इतनी सी बात है, मैं अपने पोते को इस प्रतियोगिता में अवश्य जितवाऊंगा, लेकिन उससे पहले तुम्हे समझना होगा की आखिर ये मुहावरें क्या होते है , उसके बाद ही तुम इन मुहावरों की दुनिया को अच्छे से समझ पाओगे
तो चलो पहले मुहावरों का मतलब समझते है
मुहावरे और कहावतें अंग्रेजी भाषा का एक काव्यात्मक हिस्सा हैं। इसका अर्थ है की किन्ही शब्दों के अर्थ को अपने शाब्दिक अर्थ की जगह दो या अधिक शब्दों के अर्थ के सेट का अर्थ एक साथ देना। लोग अपने शब्दों और कहि हुई भाषा को और अधिक अभिव्यंजक एवं काव्यात्मक बनाने के लिए मुहावरों और कहावतें का उपयोग करते हैं।
अब तुम्हे समझ आ गया होगा की मुहावरों का अर्थ क्या होता है और इनका हमारे जीवन में क्या महत्व है , अब तुम और अच्छे से समझ जाओगे ज़ब तुम और हम इस पर्चे में लिखें मुहावरों के जरिये एक कहानी का रूप देकर उन्हें अपने शब्दों में लिखेंगे और गहरायी से समझेंगे तो चलो शुरू करते है , मुहावरों की दुनिया में सबसे पहले मुहावरें को एक कहानी का रूप देकर
सबसे पहला मुहावरा है
बारह बरस पीछे, घूरे के भी दिन फिरते है
एक समय पर सबका भाग्य उदय' होता है। मुहावरे का अर्थ–'कभी न कभी सबका भाग्य उदय होता है या छोटे और दरिद्र व्यक्ति को कभी न कभी सम्मान और संपन्नता मिलती ही है' बारह बरस बाद घूरे के भी दिन फिरते है
शादी के पांच साल बाद ही विधवा हुयी सारिका को ज़ब उसके ससुराल वालों ने उसके छोटे छोटे बच्चों के साथ घर से ये कह कर निकाल दिया कि ये तो कुलक्षडी है , अपने पति को खा गयी, घर में रही तो ना जाने और किस किस को खा जाएगी
उसके ससुरवालों ने उसे घर से तो निकाल ही दिया बल्कि उसके पति के हिस्से कि ज़मीन भी उससे छीन ली, कोरे कागज पर उससे दस्तखत लेकर सारी ज़मीन उसके देवर ने अपने नाम कर ली थी, बेचारी गांव कि सीधी सादी अनपढ़ लड़की दो छोटे छोटे बच्चों को लेकर अपने मायके आ गयी
लेकिन मायका भी ज़ब तक मायका रहता है, ज़ब तक लड़की के माता पिता जिन्दा रहते है , उसके बाद तो वो भाई भाभी का घर हो जाता है, जहाँ रहना किसी जिल्लत से कम नही
बेचारी को एक काल कोठरी दे दी गयी जिसमे वो अपना सर छिपाये रहती थी, कोई कब तक किसी का पेट पाल सकता है, और अगर खुद्दार इंसान हो तो उसके लिए बिना मेहनत का एक निवाला भी हलक से उतरा विष समान है
सारिका अनपढ़ जरूर थी, लेकिन खुद्दारी उसके खून में थी, उसने अपना और अपने बच्चों का पेट पालने के लिए जी तोड़ मेहनत कि, लोगो के खेतों पर काम किया, घरों घरों जाकर झाड़ू बर्तन किये, अपने हौसले को कभी टूटने नही दिया
अनपढ़ होने का जो दुख उसे था और हमेशा रहा, अनपढ़ होने कि वजह से जो तकलीफ उसने सही वो ही जानती थी, इसलिए उसने खुद को भूखा रखना अच्छा समझा लेकिन अपनी औलाद को प्राइवेट ना सही सरकारी स्कूल में दाखिल करा दिया
उसकी आस्था हमेशा ईश्वर में थी, उसे उम्मीद थी कि एक ना एक दिन सब ठीक हो जाएगा, ये दिन भी गुज़र जाएंगे
पहले बाहर का काम करती फिर घर आकर अपनी भाभियों का भी काम करती, ताकि उसे कोई उसके बच्चों और उसे कोई ताना ना दे,
बेचारी मशीन सी बन गयी थी, धीरे धीरे समय बीतता गया, उसकी मेहनत रंग ला रही थी, ईश्वर ने उसे होशियर बेटा बेटी दिए थे, जिन्होंने अपनी काबलियत के दम पर सरकारी स्कूल से निकल कर प्राइवेट स्कूल में दाखिला ले लिया जहाँ उन्हें छात्र वृत्ती भी मिलती
सारिका अपने आप को तो जैसे भूल ही गयी थी, कम उम्र में विधवा हो जाने के बाद भी कभी उसने दुसरे ब्याह के बारे में नही सोचा, गांव के बहुत से लोग उसकी खूबसूरती के चलते उसे पहली या दूसरी पत्नि बनाने के हक़ में थे, और बच्चों कि भी ज़िम्मेदारी उठाने को कहते
लेकिन सारिका ने कभी भी अपनी ख़ुशी के खातिर अपने बच्चों के लिए सोतेले बाप का इंतेखाब ( चयन ) नही किया उसने अपनी जवानी खुद को मशीन बनाने में और इस आस में गुज़ार दी कि एक दिन उसके भी दिन फिर जाएंगे, ज़ब उसके दोनों बच्चें पढ़ लिख जाएंगे
थोड़ा समय तो लगा लेकिन उसका विश्वास और उसका धैर्य और मेहनत रंग ले आयी ज़ब उसके दोनों बच्चें पढ़ लिख कर कामयाब हो गए, बेटी सरकारी डॉक्टर बन गयी और बेटा फौज में भर्ती हो गया
वो घर जो कभी घूरे जैसा था , एक काल कोठरी कि तरह दिखाई देता था , आज उसकी जगह एक खूबसूरत कोठी बन गयी और सारिका जिसके हाथ कि लकीरें बर्तन मांझ माँझ कर घिस गयी थी, अब उन हाथो में उसके पोता पोती थे
जो भी उससे मिलता तो पीठ पीछे यही कहता जिस जिसने भी उसका बुरा समय देखा था , सच कहते है "बारह बरस पीछे, घूरे के भी दिन फिरते है "
दीन दयाल जी द्वारा सुनाई गयी और मानव द्वारा लिखी गयी कहानी से मानव को इस मुहावरें का अर्थ अच्छी तरह समझ आ गया था
रात काफ़ी हो चुकी थी, और उसे नींद भी आने लगी थी, इसलिए दीन दयाल जी ने कहा " बेटा! अब सो जाते है , कल को एक नये मुहावरें पर कहानी लिखेंगे ताकि तुम अच्छे से समझ सको और शिक्षा प्राप्त कर सको "
मानव ने अपनी कॉपी बंद कर उनके पास ही सो गया, फिर उसके बाद उसके दादा उसे उठा कर अपनी गोदी में उसकी माँ के पास छोड़ आये
फिर मिलते है, अगली लघु कथा के साथ ज़ब तक के लिए अलविदा
मुहावरों की दुनिया प्रतियोगिता हेतु
sunanda
25-Apr-2023 01:35 PM
beautiful story urooj sir
Reply
Seema Priyadarshini sahay
05-Mar-2023 12:35 PM
ऊरूज भाई,बहुत अच्छी कहानी।
Reply
madhura
14-Feb-2023 02:37 PM
nice
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